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A deep motivation:

A deep motivation:just for  all of you -

       
                                           हममे से ऐसे बहुत से लोग है जो किसी न किसी तरीके से अपने वास्तिविक कार्यशेली जिसमे उनसे स्वयं से कुछ सकारात्मक कार्य नहीं किया जा सका है ,को किसी न किसी अन्य दुसरे इंसानों ,पारिवारिक परिस्थितियों अथवा जीवन में चल रही जटिलताओं के माध्यम से स्वय को सांत्वना देते हुए प्रतीत होते है ! इन सब में अपनी वास्तविकता का आकलन करना किसी भी परिप्रेक्ष्य में उन्हें बड़ी तकलीफ देता है -वो चाहते है की जिनसे वो जुडा हुआ है उसके जीवन में जुड़े हुए इन्ही सब लोगो के कारण में अपने जीवन में सफल नहीं हो पा रहा / रही हु !
किन्तु क्या यह तर्क सत्य की कसौटी पर सौ फीसदी खरा है ? क्या वास्तिविकता में कोई अन्य आपके जीवन में उपस्थित व्यक्ति अथवा परिस्थिति आपके लक्ष्य से आपको विचलित कर सकती है ? 
नही ! कभी नहीं !

- असफलता के जिम्मेदार - 

इस बात को एक छोटे से उदाहरण के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हु ,
"एक प्राइवेट नामी कम्पनी का" बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर " बड़ा ही समय पावंद , प्रवंधन में प्रवल ,एवं अपने बनाये हुए सिद्धांतों पर चलने वाला था ! इस कम्पनी में कोई अपना 100 फीसदी देकर ही प्रमोशन पा सकता था ,नतीजा यह था कि - कम्पनी में पदस्थ कर्मचारी एक ही पद पर कई सालों तक कार्य करते एवं उनमे से जो सबसे प्रतिभाशाली कर्मी होता उसको कई कसौटियों पर कसकर ही प्रमोशन मिल पाता था !
अपने बॉस के इस मिजाज़ के कारण कम्पनी के बहुत से कर्मचारी मन - ही मन बॉस को खरी - खोटी कहते एवं उनके प्रमोशन में सबसे बड़ी हड्डी के नाम पर बॉस को कोसा करते थे !
एक दिन की बात है सुबह सुबह जैसे ही सभी कर्मचारी अपनी अपनी टेबल पर पहुचते है - उनसभी कर्मचारियों को अपनी अपनी टेबल पर एक - एक लिफाफा रखा हुआ मिलता है - जिसमे एक संदेश होता है -कि कम्पनी के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर ' इज नो मोर' !  वो अब दुनिया में नहीं रहे -जिसको भी उनके अंतिम दर्शन करने की लालसा हो आडिओटोरियम में जाकर शोक - व्यक्त कर बॉस के प्रति अपनी श्रद्धांजली अर्पित कर सकते है !
कम्पनी के हर छोटे से लेकर बड़े कर्मचारी अंदर ही अंदर बड़े प्रसन्न हो रहे थे - आखिर उन सभी के प्रमोशन का सबसे बड़ा रोड़ा जो दुनिया छोड़ चूका था - आखिर में सभी स्टाफ ने एक साथ शोक व्यक्त करने हेतु 
आडिओटोरियम  की ओर रुख किया वहा पर एक सफेद कफन में शव रखा हुआ था !जहाँ पर शोक व्याप्त करने एक एक करकर जाना पड़ता है -यहाँ सभी कर्मचारी एक साथ ही अपनी अपनी शोक सम्वेदना व्यक्त करने हेतु शव के पास पहुचते है - वहां मौजूद एक शख्स कफन को अलग करता है - जैसे ही लोग शव के स्थान पर देखते है - सभी के सभी कर्मचारी एक दम से भौचक्के रह जाते है - एवं बड़ी शर्मिंदगी महसूस करते है !
"असल में जहाँ शव होना समझ कर सभी गये हुए थे वहां पर कफन के अंदर शव के स्थान पर एक "आइना "रखा हुआ था !जैसे ही सभी ने देखा सबको अपने - अपने चेहरे ही दिखाई दिए !
अंदर से एक अन्य कर्मचारी जो पूर्व में उच्च पद पा चूका था ,सामने आता है - और बतलाता है -"आपकी सफलता - में बाधक हमारे कम्पनी के डायरेक्टर नहीं बल्कि आप लोग स्वय हो - जो अपनी अपनी नाकामी को छुपाने एवं अपने आपको झूठी सांत्वना देने के लिए सर (बॉस )को दोषी ठहराते हो !दोष आप लोगो में स्वयं में है -आपकी सोच में है आपकी मानसिकता में है -आपमें वो   धैर्य है ही नहीं जिसकी आवश्यकता एक सफल व्यक्तित्व को होती है - आप सभी अपने अपने सीमित अवसरों से अपने अपने जीवन में संतुष्ट हो - किन्तु जब कभी अपने से आंगे वाले सफल व्यक्तित्व पर आपकी नजर पडती है तो अपनी असफलता को अपनी नकारात्मक सोच को किसी अन्य के मत्थे लगा देते है "
कम्पनी के समस्त कर्मचारिओं का सर शर्मिंदगी से झुक जाता है एवं उन्हें एहसास होता है कि किसी भी व्यक्ति विशेष का आपकी सफलता पर किसी भी परिप्रेक्ष्य में कोई प्रभाव नहीं पड़ता है - जिसने ठान लिया है उसे फर्क नहीं पड़ता है दुनिया किस फैर में है और वह स्वयम किस फेर में -वो चेन की सास तभी लेगा जब वो अपनी मंजिल पर अपनी उपलब्धि अपनी सफलता का झंडा फहरा देगा !
हो सकता है बहुत से लोग मेरे इस आर्टिकल को dislike करदे पर - बात गहरी है - जिस दिन भी समझ आएगी एक सीमित जीवन यापन करने वाला साधारण से साधारण इंसान भी असीम संसाधनों से युक्त योद्धा बनकर जीवन में कुछ कर गुजरने का संकल्प ले लेगा !
                                                                                  धन्यवाद !

Indian Constitutions and Polity

# सम्विधान की रचना :

                                                      **    केविनेट मिशन के प्रस्तावों में एक प्रस्ताव "सम्विधान सभा" के                                                                गठन का भी था !

**कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार सम्विधान सभा के सदस्यों का चुनाव प्रान्तिये विधान सभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से किया गया !
** प्रान्तों से प्रतिनिधियों की संख्या का निर्धारण प्रति दस लाख की जनसँख्या पर एक प्रतिनिधि के हिसाब से किया गया था !
** सम्विधान सभा के लिए कुल 389स्थान निर्धारित किये गये जिनमे प्रान्तों से 292सदस्यों देशी रियासतों से 93 सदस्यों एवं कमिश्नरी क्षेत्रों से चार सदस्यों को लिया जाना था !
## सम्विधान सभा का मुस्लिम लीग ने वहिष्कार किया ,जिसके कारण सम्विधान सभा के सदस्यों की संख्या 389 से घटकर 299 हो गई थी !
## सम्विधान सभा की पहली बैठक  09 दिसम्बर 1946 में सच्चिदानंद सिन्हा को -सभा का अस्थाई -अध्यक्ष चुना गया था !
## 11दिसम्बर 1946 को सम्विधान सभा के स्थाई अध्यक्ष के रूप में डॉ .राजेन्द्र प्रसाद को चुना गया था !
## बी .एन .राय को सम्विधान सभा का संवैधानिक सलाहकार नियुक्त किया गया !
## सम्विधान सभा की प्रथम बैठक कौंसिल चेम्बर के पुस्तकालय में हुई थी ,जो दिल्ली में स्थित है !
## "कौंसिल चेम्बर के पुस्तकालय"को अब "Constitutional Haata" के नाम से जाना जाता है !
## 15नवम्बर 1948 को सम्विधान के प्रारूप पर विचार शुरू किया गया !
## 26नवम्बर 1949को सम्विधान सभा द्वारा निर्मित सम्विधान को अंतिम रूप से स्वीकार करलिया गया !
## 24जनवरी 1950को सम्विधान सभा द्वारा सम्विधान की तीन प्रतियां सभा पटल पर रखी गई , इस सम्विधान पर 284सदस्यों ने एक एक करके तीनो प्रतियों पर हस्ताक्षर किये , !
## 26जनवरी 1950को यह भारतीय गणराज्य की अंतरिम संसद के रूप में अवतरित हुई !
## सम्पूर्ण सम्विधान के निर्माण में 2वर्ष 11महीने और 18दिन लगे !
## सम्विधान के कुछ प्रावधान 26जनवरी 49 को को ही लागू कर दिए गये थे ,एवं शेष 26जनवरी 50 को लागु किये गये !
## सम्विधान सभा पूर्ण प्रभुसत्ता संपन्न संस्था नहीं थी !15अगस्त 1947को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम प्रवर्तित होने के बाद ,सम्विधान भी पूर्ण प्रभुसत्ता सम्पन्नं संस्था हो गई !
## सम्विधान सभा का अंतिम एवं 11वा सत्र 14-26नवम्वर 1949 को सम्पन्न हुआ !इसी दिन सम्विधान को अंतरिम रूप से स्वीकार किया गया !
## नागरिकता ,निर्वाचन ,अंतरिम संसद आदि से सम्वन्धित कुछ अनुच्छेद 26नवम्वर 1949 से ही लागू हो गये थे !

## सम्विधान की मूल प्रस्तावना में 42वे सम्विधान संसोधन ,1976 के माध्यम से समाजवादी पन्थ निरपेक्ष तथा अखंडता शब्दों को जोडा गया !
## केशवानंद भारती बनाम केरल में सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि सम्विधान की प्रस्तावना में संसोधन किया जा सकता है !
##सम्विधान की प्रस्तावना में भारत को गणराज्य घोषित किया गया है !
## सम्विधान की प्रस्तावना में भारत के समस्त नागरिकों के लिए सामाजिक ,आर्थिक ,राजनैतिक न्याय ,प्रतिष्ठा और अवसर की समानता तथा व्यक्ति की गरिमा ,को सुनिश्चित करने का संकल्प लिया गया है !
## सम्विधान की प्रस्तावना का उद्देश्य लोगों को सामाजिक तथा आर्थिक ,राजनैतिक न्याय ,मत , विश्वास तथा धर्म की स्वतंत्रता ,पद एवं अवसर की समानता ,व्यक्ति की गरिमा तथा राष्ट्र की एकता के लिए भाई -चारा को बडाना है !
## 42बे सम्विधान संसोधन अधिनियम 1976के माध्यम से सम्विधान की प्रस्तावना में ,"पन्थ निरपेक्ष "शब्द को जोड़ा गया है !इससे तात्पर्य है ,की किसी भी राज्य विशेष का अपना कोई पन्थ या धर्म नहीं होगा !
## प्रस्तावना सम्विधान का एक भाग है ,जोकि सर्वथा न्याय योग्य नही है , !
## पंथ -निरपेक्षता भारतीय -लोकतंत्र की अति -विशिष्ट विशेषता है , भारत के पड़ोसी राज्य ,पाकिस्तान -, बांगलादेश ,श्रीलंका ,-म्यांमार -,, एवं नेपाल धर्म आधारित राज्य है , !
## प्रस्तावना के उद्देश्य को , पूरा करने के ध्येय से सम्विधान के अनुच्छेद 25-28 में भारत के सभी नागरिकों को धर्म तथा उपासना की स्वतंत्रता मूल अधिकार के रूप में प्रदान की !
## इस उद्देश्य के तहत राज्य -न तो किसी व्यक्ति अथवा नागरिक को कोई धर्म मानने के लिए बाध्य कर सकता है , एवं न ही किसी धर्म को मानने हेतु प्रोत्साहित कर सकता है !


##  -- विशिष्टता ## -- 
                             ## भारत का सम्विधान लिखित सम्विधान है , जो की ब्रिटेन के जैसे परम्पराओं और रीतिरिवाजों पर आधारित नहीं है !
## भारतीय सम्विधान में संघात्मक और एकात्मक व्यवस्थाओं का समन्वय है !
## भारतीय संघ की इकाईओं को अपना सम्विधान रखने की अनुमति नहीं है , !
## भारतीय संघ में जम्मू -कश्मीर अकेला एक एसा अपवाद राज्य है ,जिसका अपना सम्विधान है !
## भारतीय सम्विधान में केंद्र की सर्वोच्चता को स्वीकार किया गया है !
## भारतीय सम्विधान ,- सम्विधान के कुछ क्षेत्रों में नम्य तथा कुछ क्षेत्रों में अनम्य है !
## भारतीय सम्विधान के आधार पर देश का राष्ट्रपति नाम मात्र का प्रधान होता है ,क्योकि सम्विधान में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है !


                 ## संघ तथा संघ के राज्य क्षेत्र :-
                                                                  ## भारतीय सम्विधान में  अनुच्छेद 01के आधार पर भारत को India(इंडिया )कहते हुए  स्म्वोधित किया गया है !एवं स्पष्ट किया गया है कि ,भारत राज्यों का एक संघ होगा !
## भारत संघ की संसद भारतीय संघ में नये राज्यों का प्रवेश एवं स्थापना सम्विधान के अनुच्छेद 02के अनुसार कर सकता है !
## भारतीय सम्विधान के अनुच्छेद 03के अनुसार ,संसद विधि के माध्यम से :-
@किसी भी राज्य का क्षेत्र बड़ा सकती है !
@@ किसी भी राज्य का क्षेत्र घटा सकती है !
@@ किसी भी राज्य क्षेत्र की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी !
@@ किसी भी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकेगी !
नोट :- इन सभी संदर्भित मामलों में कोई भी विधेयक -बिना राष्ट्रपति की सिफारिश के सदन में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता !

## स्वतंत्रता के समय देश में केवल दो ही प्रकार की राजनैतिक इकाइयाँ थी : - ब्रिटिश सरकार के अधीन प्रांत एवं देशी रियासते !
## देशी रियासतों के विलय में सरदार बल्लभ भाई पटेल ने अपनी महत्त्व -पूर्ण भूमिका निभाई थी !
## एस .के .दर .आयोग जिसका गठन 1948में हुआ था , ने भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन को - अस्वीकार कर दिया था !
## केंद्र सरकार के द्वारा फजल अली की अध्यक्षता में - 29दिसम्बर 1953को एक आयोग का गठन किया गया ,जिसमे "के .एम् .पन्निकर "एवं " हृदय नाथ कुंजरू " सदस्यों के रूप में शामिल थे !
## भाषाई आधार पर गठित देश का पहला राज्य आंध्र-प्रदेश है !
## पंजाब तथा हरियाणा राज्य का पुनर्गठन शाह आयोग की सिफारिशों के अनुसार संन -1966में किया गया था !
## सम्विधान में 53वां एवं 56वां संसोधन क्रमशः 1986एवं 87में किया गया था !जिसके आधार पर मिज़ोरम -,अरुणाचल प्रदेश -एवं गोवा को राज्य के रूप में मान्यता प्रदान की गई !
## उत्तरप्रदेश -मध्य-प्रदेश -,, विहार -,, का पुनर्गठन कर क्रमशः -,, उतराखंड --,, छत्तीसगढ़ --,, तथा झारखंड नामक तीन नये राज्यों का गठन संन 2000में किया गया !


                          !! भारतीय संघ !! 
                     #27राज्य सन 1949 की स्थिति #
भारतीय संघ राज्यों के घटते - एवंबढ़ते हुए आंकड़े
सरलक्र  
 राज्य "A"
     राज्य "B"
     राज्य "C"
1
 असम 
 हैदरावाद 
 अजमेर-मेवाड़ 
2
 बिहार 
 जम्मू -कश्मीर 
 भोपाल 
3
 बम्बई 
 मध्य -भारत 
 कुर्ग 
4
मध्य -प्रांत /बिहार 
 मैसूर 
 दिल्ली 
5
 मद्रास 
 पूप्सू 
 हिमाचल 
6
 उडीसा 
 राजस्थान 
 कच्छ 
7
 पंजाब 
 कोचीन /त्रावणकोर 
 विन्ध्य-प्रदेश 
8
संयुक्त प्रांत          
  सौ-राष्ट्र 
 मणिपुर 
09
पश्चिम - बंगाल 

 त्रिपुरा 
10


 बिलासपुर 


                                                     !!  राज्यों के पुनर्गठन के बाद !!
 ##    सन - 1956  -  भारत संघ : 14 राज्य #

S.N.





 1 
 उत्तर प्रदेश 
5- असम  
9-केरल  
13-राजस्थान  

 2 
 पंजाब 
6 -उडीसा 
10-मैसूर   
14-जम्मू-कश्मीर  

 3 
 बिहार 
7 -आंध्र-प्रदेश  
11-बम्बई 


 4 
 प.बंगाल 
8-तमिलनाडू  
12-मध्य प्रदेश 











                                  ##वर्ष 1956 से वर्ष 2000 की अवधि में राज्यों के दर्जे एवं नामों में परिवर्तन ##



वर्ष
राज्य/संघ राज्य क्षेत्र  

नये राज्य का नाम /संख्या  


 वर्ष 
 राज्य/संघ राज्य क्षेत्र  

 नये राज्य का नाम /संख्या  
1960 
 बम्बई 
15 
 गुजरात 


 1987
मिज़ोरम* 
 23 
 मिज़ोरम 
1963
 असम 
16  
 नागालैंड 






1966
 पंजाब 
 17 
 हरियाणा 


 1987
अरुणाचल*  
 24 
अरुणाचल  
1971  
 हिमाचल* 
 18 
 हिमांचल 


 1987
गोवा * 
 25 
 गोवा 
1972
 असम 
 19 
 मेघालय 






1972
 मणिपुर 
 20 
 मणिपुर 


 2000
मध्य प्रदेश 
 26 
 छत्तीसगढ़ 
1972
 त्रिपुरा *
21  
 त्रिपुरा 


 2000
उ.प्रदेश  
 27 
 उत्तराखंड 
 1975
 सिक्किम H
22 
 सिक्किम 


 2000
 बिहार 
 28 
 झारखंड 




















  
Index:- (*) संदर्भित स्टार से तात्पर्य संघ राज्य क्षेत्र से है !
           - (H) संदर्भित (H) से तात्पर्य सहयोगी राज्य से है !
                                                     # वर्तमान स्थिति # भारत संघ : राज्य 29#


क्रमांक
    राज्य
  स्थापना दिवस /सन

1
अरुणाचल प्रदेश 
 20 फरबरी 1987

2
 असम 
 1947

3
 आन्ध्र प्रदेश 
 01अक्टूबर 1953

4
 उत्तराखंड 
 01नवम्बर 2000

5
 उत्तरप्रदेश 
 1950

6
 उडीसा 
 जनवरी 1949

7
 कर्नाटक 
 1956/ // एवं 1973

8
 केरल 
 01नवम्बर 1956

9
 गुजरात 
 01मई 1960

10
 गोवा 
 30मई 1987

11
 छतीसगढ़ 
 01नवम्बर 2000

12
 जम्मू -कश्मीर 
 26अक्टूबर 1947

13
 झारखंड 
 15नवम्बर 2000

14
 तमिलनाडू 
 1947के बाद 

15
 त्रिपुरा 
 1972

16
 नागालैंड 
 01दिसम्बर 1963

17
 पंजाब 
 1947//1956//1966

18
 प.बंगाल 
  1947//1956

19
 बिहार 
 1947

20
 मणिपुर 
 21जनवरी 1972

21
 मध्यप्रदेश 
 01नवम्बर 1956

22
 महाराष्ट्र 
 01मई 1960

23
 मिज़ोरम 
 फरवरी 1987

24
 मेघालय 
 21जनवरी 1972

25
 राजस्थान 
 1958

26
 सिक्किम 
 1975

27
 हरियाणा 
 01नबम्बर 1966

28
 हिमाचल 
 1971

29
 तेलांगना 
 02जून 2014










    
                                ## संघ राज्य क्षेत्र ##

कुल 07

क्रमांक
 संघ राज्य क्षेत्र 
  स्थापना दिवस /सन

1
अंडमान निकोबार 
 1947

2
 चण्डीगढ़ 
 01नवम्बर 1966

3
 दमन और द्वीप 
 1961एवं 30मई 1987

4
दादरा नागर हवेली  
 11अगस्त 1961

5
 पांडिचेरी 
 01नवम्बर 1954

6
 दिल्ली 
 1911// 1956--//1991

7
 लक्षदीप 
 1956




 #जम्मू -कश्मीर को विशेष दर्जा :-
जम्मू - कश्मीर को भारतीय सम्विधान के अनुच्छेद 370 के अंतर्गत विशेष दर्जा प्राप्त राज्य घोषित किया गया है !
## अनुच्छेद 352 के अंतर्गत जम्मू -कश्मीर में बिना उसकी सहमती के राष्ट्रीय आपात -लागू नहीं किया जा सकता है !

## सम्विधान के अनुच्छेद 360 के अंतर्गत वित्तीय आपात जम्मू -कश्मीर पर किसी भी तरीके से लागू नहीं हो सकता है !
## सम्विधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार जम्मू -कश्मीर में पहले राज्यपाल -शाशन की घोषणा की जाती है !
## नियंत्रक ,महालेखक ,परीक्षक ,, निर्वाचन ,,आयोग तथा उच्चतम न्यायालय की विशेष अनुमति की अधिकारिता का विस्तार जम्मू -कश्मीर राज्य पर किया गया है !
## जम्मू -कश्मीर का अपना स्वयम का सम्विधान है ,जो वर्ष 1957 से लागू है !

                                                                 भारतीय नागरिकता अधिनियम, - 1955


## भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 , को पारित करते हुए सम्विधान में नागरिकता सम्वन्धी व्यापक नियमावली तैयार की गई है !जैसे कि :-
:- किसी भी नागरिक को भारत का नागरिक तभी माना जायेगा जब वह :
@ भारत में जन्मा हो !
@ भारत में निवासरत वंशाधिकारी हो !
@ उसने नागरिकता प्राप्त करने हेतु पंजीकरण कराया हो !
@देशीकरण के द्वारा !
@ किसी भी क्षेत्र विशेष की समाविष्टि के माध्यम से !

## 26जनवरी 1950 के बाद  भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति जन्म से ही भारत का नागरिक होगा !

नोट :- ऐसे नागरिक जो भारत में जन्मे विदेशी राजनायको एवं कर्मचारिओं के बच्चे तथा ऐसा भाग जो भारत में तो हो किन्तु किसी शत्रु के अधीन हो - ऐसी स्थिति में वे भारतीय नागरिकता से वंचित रहेंगे !

## 26 जनवरी 1950 के बाद भारत के बाहर जन्म कोई भी व्यक्ति , जिसके पिता भारतीय नागरिकता प्राप्त किये हो ,,अपेक्षाओं के अधीन रहते हुए ,भारत का नागरिक होगा !

## कुछ ऐसी परिस्थितियों में जिनमे कोई व्यक्ति विहित रीति में पंजीकरण द्वारा भारतीय नागरिकता अर्जित कर सकते है !

## विदेशी व्यक्ति कुछ उचित मान्य शर्तो के आधार पर , नागरिकता प्राप्त करने हेतु ,आवेदन देकर नागरिकता प्राप्त कर सकते है !

## यदि कोई राज्य क्षेत्र - भारत देश का अंग बन जाता है , तो भारत सरकार आदेश द्वारा यह निर्दिष्ट कर सकती है , कि उसके परिणाम स्वरुप  कौन - व्यक्ति भारत के नागरिक बन सकते है !
## नागरिकता कतिपय आधारों पर - स्वेच्छा से त्याग दिए जाने या वंचित कर दिए जाने के कारण समाप्त हो सकती है !

## राष्ट्र मंडल देश के किसी नागरिक को भारत में - राष्ट्र मंडल नागरिक का दर्जा प्राप्त होगा -सरकार परस्परता के आधार पर उपयुक्त प्रावधान कर सकती है !

## 1986 में किये गये संसोधन के अनुसार कोई व्यक्ति जिसका जन्म भारत में 26जनवरी 1950- के पश्चात् किन्तु 26नवम्बर 1986के पूर्व हुआ हो , उसे देश की नागरिकता तभी प्राप्त होगी - जब उसके जन्म के समय उसके माता -पिता में से कोई एक भारत का नागरिक रहा होगा !

## भारत के प्रत्येक नागरिक को एकल -नागरिकता प्राप्त है -

## संयुक्त -राज्य अमेरिका की भाति - नागरिक को किसी -प्रदेश या प्रान्त की नागरिकता प्राप्त नहीं है !

## अलग -अलग सोलह देशों में रहने वाले भारतीय मूल के नागरिकों को -वर्ष 2003 में एक संसोधन करके - दोहरी नागरिकता प्रदान की गई !

                        ##सोलह देश जिनमे ,भारतीय मूल के लोगो को "दोहरी नागरिकता "की सुविधा प्रदान की गई है !##




1
 अमेरिका 
5
 इसराइल 
9
 सायप्रस 
13
 स्वीडन 
2
 इंग्लैंड 
6
 नीदरलैंड 
10
 पुर्तगाल 
14
 ग्रीस 
3
 स्विट्ज़रलैंड 
7
 फ़िनलैंड 
11
 कनाडा 
15
 ऑस्ट्रेलिया 
4
 इटली 
8
 न्यूज़ीलैण्ड 
12
 फ्रांस 
16
 आयरलैंड 
                           सोलह देश जिनमे ,भारतीय मूल के लोगो को "दोहरी नागरिकता "की सुविधा प्रदान की गई है !




           ## सम्वन्धित सोलह भारत वंशी लोगो को अधिकार /सुविधाए :-


           @ भारत के अंदर शिक्षा का अधिकार  !

           @ व्यापारिक अथवा वाणिज्यिक क्रियाकलापों  के अधिकार ! एवं :-

           @ आर्थिक गतिविधियाँ चलाने के अधिकार !

            @ देश में सम्पत्ति क्रय कर सकते है !


                            ## भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम -  1986 ##
## भारतीय नागरिकता अधिनियम -:1956 -में किये गये संशोधन :-
                          1 - देशियकरण  द्वारा तभी नागरिकता प्रदान की जाएगी ,जबकि सम्वन्धित व्यक्ति कम से कम 10 वर्षों तक                                               भारत में रह चूका हो ! यही आव्धि पूर्व में पांच वर्षों की थी !

                           2 - अब भारत में जन्मे केवल उस व्यक्ति को ही नागरिकता प्रदान की जायेगी -,जिसके माता -पिता में से कोई                                             एक भारत का नागरिक रहा हो !

                           3 -जो व्यक्ति पंजीकरण के माध्यम से नागरिकता प्राप्त करना चाहते है ,उन्हें भी अब भारत में कम से कम पांच                                            वर्षो तक निवास करना होगा !यही अवधि पूर्व में सिर्फ छः माह की थी !



## संसद द्वारा सर्वसम्मति से सन 1992 में , ना गरिकता संशोधन विधेयक पारित करके यह व्यवस्था की गई कि ,भारत से बाहर जन्मे बच्चे को ,यदि उसकी माँ भारत की नागरिक है , तो उसके बच्चे को भी भारतीय नागरिकता प्राप्त होगी !

नोट # इससे पूर्व उसी स्थिति में -बच्चे को भारत की नागरिकता प्राप्त होती थी ,जबकि जन्मे बच्चे का पिता भारतीय नागरिक हो !

## कोई भी नागरिक अपनी मर्जी से अपनी नागरिकता का त्याग कर सकता है !

## कुछ विशेष वर्गो को जैसे कि ,अंगीकृत नागरिक वर्ग -,दीर्घ आवासीय नागरिक वर्ग -,, पंजीकृत नागरिक वर्ग -,, को नागरिकता से वंचित करने के अधिकार है !

## भारत सरकार उन नागरिकों की नागरिकता का भी हरण करने का अधिकार अपने पास सुरक्षित रखती है ,जो :,
   @ देश में रहते हुए -शत्रु पक्ष को गोपनीय सूचनाओ को पहुचाये  !

   @ देश की नागरिकता के लिए किसी भी प्रकार से जाली दस्तावेजों का प्रयोग किये हो !

   @ देश में निवासरत ऐसे नागरिक जो ,भारतीय सम्विधान के प्रति अपनी अनिष्ठा प्रकट करते हो !एवं ,,
   @ भारत देश में निवासरत कोई एसा नागरिक जिसे भारतीय नागरिकता प्राप्त किये हुए पूर्ण पांच वर्ष नहीं हुए ,एवं ऐसे व्यक्ति               को किसी न्यायालय से दो वर्ष या उससे अधिक का कारावास की सजा कारित की गई हो , तो भारत सरकार ऐसे नागरिक           की नागरिकता को हरण करने का अधिकार रखती है !

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## -- राज्य के नीति निदेशक तत्व :-

            विशेष ;- सम्विधान के नीति-निदेशक तत्वों का विचार भारतीय सम्विधान में "आयरलैंड "  से लिया गया है !                               
@-:-     कोई एक राज्य स्वयम की नीतियों का निर्धारण करने हेतु जिन नीतियों का निर्धारण करेगा , सम्विधान में                          उसे नीति -निदेशक तत्व के द्वारा वर्णित किया गया है !
@        नीति -निदेशक तत्वों को कोई भी वैधानिक शक्ति प्राप्त नहीं है ,अत:इसे न्यायालय द्वारा लागु नहीं करवाया जा                   सकता है !
@        सम्विधान के अनुच्छेद 38 के अनुसार -सामाजिक व्यवस्था का निर्माण -, राज्य लोक -कल्याण की -अभिवृद्धि हेतु                करेगा ,जिससे कि व्यक्तियों में असामानता की भावना का विकास न हो सके !

@        सम्विधान के अनुच्छेद 42--43 के अनुसार राज्य श्रीमिकों के लिए एक ऐसी व्यवस्था बनाएगा , जिससे उन्हें                          रोज़गार ,, अवकाश ,तथा शिष्ट जीवन स्तर प्राप्त हो सके !
@         
@         सम्विधान के अनुच्छेद 43 (क )के अनुसार राज्य कुटीर उद्योगों को - सहकारी आधार पर -प्रोत्साहन करेगा !

@         सम्विधान के अनुच्छेद 47 के अंतर्गत -लोक -स्वास्थ्य में सुधार लाना -,, नागरिकों के पोषण -स्तर तथा --जीवन                 स्तर को ऊँचा करना -,प्राथमिक कर्तव्य की श्रेणी में होगा !

@         अनुच्छेद 39के  अनुसार राज्य भौतिक संसाधनों का समान वितरण करेगा तथा उनका संकेन्द्रण करेगा !

@         सम्विधान के अनुच्छेद 51 के अंतर्गत - ,, राज्य - अन्तराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाये रखने का हर सम्भव प्रयास                करेगा !

----**-- राज्य की नीति को प्रभावित करने वाले तत्व :-
                                                                                          सम्बिधान के अनुच्छेद 44   में वर्णित "राज्य नागरिकों के लिए एक                                                                                             समान सिविल संहिता का निर्माण करेगा "!
** - प्रारम्भिक शैशवावस्था की देख रेख ,छः वर्ष से कम आयु के बालकों की शिक्षा का प्रावधान !

** -इसी क्रम में अनुच्छेद 48के अनुसार राज्य कृषि एवं पशुपालन को वैज्ञानिक ढंग से संगठित करेगा !
**- सम्विधान में नीति को प्रभावित  करने वाले तत्त्वों में अनुच्छेद 46 के अनुसार "राज्य अनुसूचित जातियों ,अनुसूचित            जनजातियों तथा अन्य दुर्वल वर्गो के हितो की अभिवृद्धि के लिए कानून बनाएगा !

**- राज्य पर्यावरण संरक्षण ,वन तथा वन्य जीवों के संरक्षण एवं सम्वर्धन हेतु प्रयास सम्वन्धी प्रभावी तत्त्व अनुच्छेद 48क           में वर्णित है !

**- अगले क्रम में अनुच्छेद 49 के अनुसार "राज्य ऐतिहासिक महत्व के स्मारकों ,स्थानों तथा वस्तुओं का संरक्षण सम्वन्धी उल्लेख है !

**- राज्य की नीति को प्रभावित करने वाले तत्त्वों में अनुच्छेद 50 के अनुसार -"राज्य "कार्यपालिका "एवं "न्याय पालिका               "की शक्तियों का प्रथक्करण ,"करने सम्वन्धी उल्लेख है !


## नागरिकों के अप्रवर्त्निये अधिकार से संवंधित तत्त्व :-
                                                                                              # इन तत्त्वों में अनुच्छेद 39 (क )के अनुसार राज्य के नागरिकों को                                                            एक समान रूप से आजीविका के साधन प्राप्त करने का अधिकार :-

 # इसी सन्दर्भ में अनुच्छेद 39 (घ ) के अनुसार एक समान कार्य हेतु "एक समान वेतन का अधिकार :
# अनुच्छेद 39(ड )के अनुसार -"आर्थिक शोषण के विरुद्ध अधिकार ":-
# समान न्याय एवं समान निशुल्क विधिक सहायता  के  अधिकार का उल्लेख ब्यालीस्बे (42बे ) सम्विधान संशोधन के अधिनियम के अनुच्छेद "39 क " में संदर्भित है !

# इनही अधिकारों के क्रम में अनुच्छेद 41 के अनुसार ,काम शिक्षा एवं लोक सहायता पाने का अधिकार निहित है !,जबकि अनुच्छेद 42 के अनुसार कार्य की न्याय संगत ,एवं मानवोचित दशाओं तथा प्रसूति सहायता सम्वन्धी अधिकार वर्णित है !

# अनुच्छेद 43 के अनुसार मजदूरों अथवा श्रमिकों को "निर्वाह पारिश्रीमिक "पाने सम्वन्धी अधिकार है !,जबकि अनुच्छेद 43 'क " के अनुसार मजदूरों को उद्योगों के प्रवंध में भाग लेने सम्वन्धी अधिकार का उल्लेख किया गया है !
  
                     !!विशेष :-ब्यालिस्बे '42 वे ' सम्विधान संशोधन के माध्यम से  जोड़े गये "नीति -निदेशक -तत्त्व "!!

                  अनुच्छेद 48 'क ' - पर्यावरण एवं वन्य जीव संरक्षण -

                   अनुच्छेद 39 'च ' - अल्प-वयस्कों -,बालको -, को शोषण से बचाने के साथ -साथ स्वस्थ विकास का अवसर                                                       पाने का अधिकार :
                   अनुच्छेद 39'क '- एक समान न्याय एवं निशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार :-
                   अनुच्छेद 43'क' - उद्योगों के प्रवंध में कर्मकारों की सहभागिता सम्वन्धी अधिकार :-

                                        !!विशेष :- चबालिस्वें '44वे 'सम्विधान संशोधन द्वारा जोड़े गये -तत्व -!!

                                     अनुच्छेद '38 "2 " - विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए लोगों के समूहों के मध्य -प्रतिष्ठा ,सुविधाओं -                                                                               और अवसरों की असमानता को समाप्त करने का प्रयास राज्य करेगा !

           नोट :-          
     **  नीति -निदेशक के समान महत्त्व पूर्ण अनुच्छेद **

                        
                  अनुच्छेद '350 'क ' :-          प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा -प्रदान करना -
                   अनुच्छेद '351'       :-          मातृभाषा -हिंदी को -प्रोत्साहन देना -




               ##मौलिक अधिकार ##




     # सम्विधान में मूल प्रारूप से कुल मिलाकर सात ( 7 )  मौलिक अधिकारों को वर्णित किया गया है !
                            1 - समानता का अधिकार -जिसे अनुच्छेद ' 14 से  18 'में वर्णित है !
                            2-  अनुच्छेद 19 से 22 में 'विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार -
                            3 -अनुच्छेद  23 एवं 24 में "शोषण के विरुद्ध अधिकार -
                            4 -अनुच्छेद  25 से 28 में "धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार -
                             5 -अनुच्छेद 29 - 31 में "संस्कृति व् शिक्षा सम्वन्धी अधिकार -
                             6 -अनुच्छेद 32 - 35 में "संवैधानिक उपचारों का अधिकार -

नोट - 
             *  '44 वे ' सम्विधान संशोधन के द्वारा सन -1978 में "सम्पत्ति के अधिकार "से सम्वन्धित 'अनुच्छेद 19(1 )'च 'एवं                            अनुच्छेद '31' को निरसित कर दिया गया !

## स्पष्टीकरण :-
                              
1.समता का अधिकार
RIGHT TO Equality
  
# अनुच्छेद 14 के अनुसार भारत राज्य क्षेत्र में -राज्य किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष                                     समानता   अथवा विधि द्वारा समान रूप से संरक्षण प्रदान करेगा !       

# अनुच्छेद -'17'में अस्प्रश्यता के उन्मूलन सम्वन्धी प्रावधान का उल्लेख है !

## यही वह अनुच्छेद है, जिसके आधार पर ,संसद के द्वारा -अस्प्रश्यता -अधिनियम -1955 का निर्माण किया गया था        ## सन -1976 में एक अन्य संसोधन द्वारा इसी अधिनियम का नाम "सिविल अधिकार -संरक्षण -अधिनियम 1955हुआ !  
## -विधि के समक्ष समानता -:
                                              विधि -के समक्ष समानता से आशय है कि ,देश में निवासरत कोई भी नागरिकता प्राप्त                                नागरिक किसी भी स्थिति में विधि -से ऊपर नहीं है !चाहे वह किसी ऊँचे -पद या ओहदे पर आसीन क्यों न हो !                             ## -विधि -के समान संरक्षण -:
                                                     विधि-के समान संरक्षण से आशय ,यह है ,कि -समान लोगो के लिए -एक समान विधि                           होगी -तथा समान परिस्थितियों के होने पर -उसमे किसी भी प्रकार का भेदभाव कारित नहीं किया जायेगा !
- याद रखने योग्य  -


     --    मौलिक अधिकारों एवं नीति -निदेशक तत्वों के बीच अंतर ---


a-मौलिक अधिकार राज्य के लिए नकारात्मक आदेश है ! 
a-नीति निदेशक -तत्व राज्य के लिए सकारात्मक -निर्देश है ! 
b-मौलिक अधिकार -न्याय -योग्य है !
b-नीति-निदेशक तत्वों को -न्यायलय द्वारा प्रवर्तित नहीं करवाया जा सकता है  !
c-मौलिक -अधिकार वैधिक -अनुशक्ति से युक्त है !
c-नीति-निदेशक तत्वों में वैधिक अनु शक्ति का अभाव  है !


d-मौलिक-अधिकार का उपयोग नागरिकों के द्वारा सम्पादित किया जाता है ! 
d-नीति-निदेशक तत्व - राज्य विशेष के उपयोग हेतु होते है !



  2 .##
 --स्वतंत्रता का अधिकार --
#अनुच्छेद 19 में कुल -छह स्वतंत्रताओं का उल्लेख संदर्भित है :-
A)अनुच्छेद 19 'A' में वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सम्वन्धी अधिकार वर्णित है !
B)अनुच्छेद 19'B' में शांतिपूर्ण एवं निरायुद्ध सम्मेलन की स्वतंत्रता सम्वन्धी अधिकार वर्णित है !

C)अनुच्छेद 19'C'में संघ अथवा संगम बनाने की स्वतंत्रता का अधिकार -
D)अनुच्छेद 19'D'भारत के राज्य में अबाध संचरण की स्वतंत्रता -
E)अनुच्छेद 19'E'के अनुसार भारत के किसी भी राज्य क्षेत्र में निवास अथवा बस जाने का अधिकार -
F)अनुच्छेद 19'G'उपजीविका -,व्यापार ,अथवा कारोबार करने की स्वतंत्रता -

नोट :-
    अनुच्छेद 19'E का अपवाद :-
                                                 यह कि -जम्मू -कश्मीर में बसने अथवा सम्पत्ति -क्रय -करने की स्वतंत्रता                                                          नहीं है !
3 .### 
- शोषण के विरुद्ध अधिकार -
 ## शोषण के विरुद्ध अधिकार का उल्लेख सम्विधान के अनुच्छेद -23 एवं 24 के अंतर्गत किया गया है जो कि :-
         1 -मानव का व्यापार नहीं किया जाएगा !

         2- राज्य के किसी भी व्यक्ति से बेगार नहीं लिया जायेगा !

         3- किसी भी फैक्ट्री -कंपनी अथवा कोई अन्य संकटमय नियोजन में 14वर्ष से कम आयु के बालको को नहीं                  लगाया जायेगा !

               4- राज्य -सार्वजनिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अनिवार्य सेवा अधिरोपित कर सकती है !इससे तात्पर्य  अनिवार्य सैनिक सेवा -राष्ट्रनिर्माण  -कार्यक्रम तथा सामाजिक सेवा से  है !

4 .## 
-धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार -
     
## धार्मिक स्वतंत्रता सम्वन्धी अधिकार का वर्णन -सम्विधान के अनुच्छेद 25-28के अंतर्गत किया गया है !
1 -धार्मिक कार्यो के प्रवंधो की स्वतंत्रता -
2 - अपने -अपने धर्म -का प्रचार -प्रसार करने सम्वन्धी स्वतंत्रता -
3 - कुछ शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा /प्रार्थना में उपस्थित होने के सम्वन्ध में स्वतंत्रता -
4 - धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर -सदाचार -जनता के स्वास्थ्य -समाज कल्याण - तथा समाज सुधार -की द्रष्टि से प्रति -बन्ध लगाये जा सकने सम्वन्धी अधिकार -



5 .##
 संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार -
# सम्विधान के अनुच्छेद -29 एवं 30 में संस्कृति एवं शिक्षा  से सम्बन्धित प्रावधान दिए गये है :-
1 - भारत के नागरिको को अपनी विशेष भाषा -लिपि या संस्कृति को बनाये रखने का अधिकार -
2 - राज्य द्वारा पोषित अथवा राज्य निधि से सहायता प्राप्त -किसी भी शिक्षण संस्था में - प्रवेश के लिए नागरिको -को मूलवंश -धर्म -भाषा एवं जाति -के आधार पर वंचित नहीं किया जायेगा !
3 - अल्प-संख्यक वर्गो को - अपनी पसंद के शिक्षण संस्थान चलाने सम्वन्धी अधिकार अनुच्छेद 30 में वर्णित है !
6 .##
 संवैधानिक उपचारों का अधिकार --

# अनुच्छेद 32-35 में दिए गये सम्वैधानिक उपचारों के अधिकार के द्वारा -मौलिक अधिकारों को -न्यायालय द्वारा प्रवर्तनिय बनाया गया है :-
1-इसके अंतर्गत -न्यायालय प्रलेख जारी कर अनुतोष प्रदान करता है !
2- अनुच्छेद 32का निलम्वन संविधान के द्वारा अन्यथा उप-वंधित किये जाने के अतिरिक्त नहीं किया जा             सकता है !
3-संदर्भित अनुच्छेदों को डॉ.भीमराव आंबेडकर ने सम्विधान की आत्मा कह कर सम्बोधित किया है !
                                                         ## संघ का शाशन ##


                                                                     
     राष्ट्रपति

                                                                   
कार्यपालिका                                विधानमंडल
                          मंत्रीपरिषद                                                              संसद 
                                                               
कबिनेट मंत्री
 राज्य मंत्री
उप् राज्यमंत्री

         उच्च  सदन
   निम्न सदन
                                                                                      राज्यसभा                                   लोकसभा 
                                                                             अधिकतम 250 सदस्य                अधिकतम 552सदस्य
                                                                                                                                                          
 
  राष्ट्रपति द्वारा नामित 
      12 सदस्य 
   राज्यों तथा संघ राज्यों से       अधिकतम 238 सदस्य                 
  
  
राज्यों से अधिकतम                           आंग्ल-भारतीयो से                                 संघ राज्य क्षेत्रो से 
530 सदस्य                                राष्ट्रपति द्वारा नामित02 सद.                      अधि.20 प्रतिनिधि                      




 राष्ट्रपति पद हेतु योग्यताये :-





- कोई भी भारतीय नागरिक ,जिसने 35 वर्षो की आयु पूर्ण कर ली हो , साथ ही लोकसभा का सदस्य होने की योग्यता रखता हो , एसा नागरिक राष्ट्रपति के पद हेतु निर्वाचित हो सकता है !

-  किसी भी प्रकार के लाभ के पद पर पदस्थ व्यक्ति राष्ट्रपति पद के लिए योग्य नहीं हो सकता है !
-- राष्ट्रपति संसद एवं राज्य विधान मंडलों का सदस्य नहीं होगा !
-- सम्विधान के अनुसार राष्ट्रपति पद के लिए नागरिक का भारत में जन्म लेना जरूरी नहीं है ,यदि वह भारत की नागरिकता धारण किये हुए है तो वह राष्ट्रपति पद हेतु योग्य है !


 राष्ट्रपति निर्वाचन प्रक्रिया :-




-              राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचक मंडल के माध्यम से किया जाता है , इस निर्वाचक मंडल में संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य एवं राज्य की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते है !

 राष्ट्रपति -:शपथ ग्रहण एवं त्यागपत्र :-






                                         --
 *-राष्ट्रपति पद ग्रहण करते समय मुख्य न्याया धीश के समक्ष राष्ट्रपति पद की शपथ -ग्रहण करता है !
*-राष्ट्रपति -अपना त्यागपत्र -उप-राष्ट्रपति ,अथवा मुख्य-न्याया धीश को - उपलब्धता के अनुसार प्रस्तुत करता है !
*-राष्ट्रपति का निर्वाचन पद रिक्त होने की तिथि से छः माह के अंदर हो जाना चाहिए !
*- कोई भी भारतीय नागरिक जितनी बार चाहे राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित हो सकता है !*
                                 *************














                                                  भारत के राष्ट्रपति 
 डॉ.राजेंद्र प्रसाद 
 1884-1963
 26 जनवरी 1950से 13 मई 1962
 डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन 
 1888-1975
 13 मई 13 मई 1967
 डॉ.जाकिर हुसैन 
 1897-1969
 13मई 1967से 3 मई 1969 
वराहगिरी वेंकट गिरी
(प्रभारी)  
 1884-1980
 3 मई 1969 से 20 जुलाई 1969
न्यायमुर्तीमो.हिदायेतुल्ला  
 1905-1992
 20july69 से 24 अगस्त 69 
 फखरुद्दीन अली अहमद 
 1905-1977
 24 अगस्त 74 से 11 फरबरी 77 
 बी .डी .जत्ती 
1913-2002 
 11फरबरी 77से 25july 77
 नीलम संजीव रेड्डी 
 1913-96
 25जुलाई 77से 25जुलाई 82
 ज्ञानी जेल सिंह 
 1916-1994
 25 जुलाई 82से  25जुलाई 87
 आर.वेंकट रमन 
 1910------
 25जुलाई 87से 25जुलाई 92
 डॉ.शंकर दयाल शर्मा 
 1918-1999
 25जुलाई 92से 25 जुलाई 97
 के .आर .नारायणन 
 1920.........
25 जुलाई 97 25 जुलाई 2002
 डॉ.ए .पी .जे .अब्दुल कलाम 
 1931
 15जुलाई 2002से 25जुलाई 2007
 श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल 
 1934
 25 july 2007से 25 जुलाई 2012
 प्रणव मुखर्जी 
 1935
 25जुलाई 2012से 24जुलाई 2017
 रामनाथ कोविंद 
 1945
 25जुलाई 17 से वर्तमान में पदस्थ 

                                     *-भारत के कार्य बाहक राष्ट्रपति *-
 1-            व्ही .व्ही .गिरी मई 1969 से जुलाई 1969 तक 
 क्यों बने ? - 03 मई 1969 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति "डॉ. जाकिर हुसैन "की मृत्यु के कारण , तत्कालीन उपराष्ट्रपति होने के नाते पदभार ग्रहण किया था !
 2 - एम् .हिदायेतुलला - जुलाई 1969 से अगस्त 1969
 क्यों बने ? - राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्याशी बनने के चलते -व्ही .व्ही .गिरी को पद त्याग करना पडा था ,एवं तात्कालीन समय में देश के प्रधान न्याया धीश होने के कारण न्याय मूर्ति "एम् .हिदायतुल्ला "को राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करना पडा !

 3 - बी .डी .जत्ती .- फरवरी 1977से जुलाई 1977 
 क्यों बने ?- 11फरवरी 77को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की मृत्यु होने के कारण ,एवं तात्कालीन समय में देश के उप-राष्ट्रपति होने के कारण राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करना पडा !

4 - एम् हिदायतुल्ला - अक्टुबर 1982 
क्यों बने ?- 
 तत्कालीन पदस्थ राष्ट्रपति ग्यानी जैलसिंह की अनुपस्थिति के चलते 06 ओक्टोबर 
 1982 से 31 अक्टूबर 1982 तक के लिए तात्कालिक उप-राष्ट्रपति एम् .हिदयतुलला 
 को राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करना पड़ा !

 ****
 मोहोम्मद हिदायतुल्ला - अलग -अलग समयों पर भारत के मुख्य न्याया धीश  एवं राष्ट्रपति पद दोनों पर पदस्थ रह चुके है !

                           *- भारत में मौलिक अधिकारों की स्थिति *- 
 मौलिक अधिकारों के सन्दर्भ में अलग -अलग मौकों पर सर्वोच्च न्यायालय ने कई अलग -अलग निर्णयों से सम्पादित किया है !
 1 -शंकरी प्रसाद विरुद्ध  भारत संघ (1952) - मौलिक अधिकार एवं अनुच्छेद 368 को इसमें शामिल कर -यह निर्णय प्रभाव में लाया गया ,कि भारतीय संसद -सम्विधान के किसी भी भाग में संशोधन करने हेतु स्वतंत्र है !

 2- गोकल नाथ विरुद्ध -पंजाब -इससे संदर्भित वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया कि , अनुच्छेद 368 के माध्यम से सम्विधान के मौलिक अधिकारों में कोई भी संशोधन नहीं किया सकता ! इसी अधिनियम के माध्यम से सम्विधान में मूलाधिकारो सहित संशोधन करने के संसद के अधिकारों से सम्वन्धित समस्त सन्देहो को दूर करने एवं पारदर्शी बनाने हेतु - अनु ० 13 एवं अनु० 368 में संशोधन किया गया !

3 - केशवानंद विरुद्ध केरल :- इस मामले यह निर्धारित किया गया कि ,संसद सम्विधान ,के किसी भी भाग में , आवश्यक संशोधन तो कर सकती है ,किन्तु -किसी भी तरीके से -सम्विधान के मूल -आधारों से छेड़ - छाड़ नही कर सकती !सन -1976 
 में 42वें  संशोधन के द्वारा -अनु० 368में खंड 4 एवं 5 जोड़ कर यह स्पष्ट कर दिया गया ,कि इस आधार पर - की गई संशोधित व्यवस्था को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती !
 याद रखने योग्य -न्यायालय के द्वारा तय किये गये मूल आधारिक लक्षणों की सूचि में "मौलिक -अधिकारों "का उल्लेख नहीं है !

 4 - मिनर्वा मिल्स विरुद्ध भारत संघ -:-   मिनर्वा मिल्स एवं भारत संघ के वाद में , 
                                           केरल बनाम केशवानंद संदर्भित - अभिनिर्धारित - 
 निर्णय  की पुष्टि अथवा 'स्पष्ट किया गया है !
 इसके अलावा यह भी अभिनिर्धारित किया गया कि ,सर्वोच्च न्यायालय को - 
 सम्विधान के आधारभूत -लक्षणों की रक्षा करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है !
 सा थ ही इसी आधार पर वह -किसी भी संवैधानिक - संशोधन का पुनरवलोकन 
 कर सकती है !****


० राष्ट्रपति से सम्वन्धित विशेष तथ्यों पर एक नजर - 
    
० राज्य की विधानसभा के भंग होने का देश के राष्ट्रपति - के निर्वाचन पर कोई प्रभाव नही पड़ता है !
० राष्ट्रपति -पद के प्रत्याशी को - 50 अनुमोदकों एवं  50 प्रस्तावकों द्वारा लिखित 
 समर्थन आवश्यक होता है !
०राष्ट्रपति के पद हेतु - प्रत्याशी को जमानत राशि जमा करनी अनिवार्य होती है !
० राष्ट्रपति के पद हेतु जमानत राशि -पन्द्रह हजार रूपये - 15000 /- निर्धारित है !
०राष्ट्रपति पद हेतु डाले गये मतों के 1 /6 से कम वोट प्राप्त करने वाले प्रत्याशी की जमानत राशि जब्त करली जाती है !
०राज्य की विधानसभाओं के सदस्य के मतो का निर्धारण :-=                 
        राज्य की जनसंख्या
     1
विधानसभाकेनिर्वाचित सदस्यों की संख्या
   1000
                                                    =  विधानसभा के एक सदस्य की मत संख्या 

०संसद के सदस्यों के मतों का निर्धारण  इस सूत्र के माध्यम से किया जाता है !

  
राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित            सदस्यों के मतों की कुल संख्या  
= एक निर्वाचित संसदसदस्य का 1 मत      
संसद के निर्वाचित सदस्यों की संख्या
०अवधि -राष्ट्रपति पद की अवधि पद ग्रहण करने की तारीख से ठीक पांच वर्ष तक होती है !
०भारत के राष्ट्रपति का मासिक वेतन 1.5 लाख रूपये है , !
०भारत के राष्ट्रपति को मासिक वेतन के अलावा संसद के द्वारा स्वीक्रत अन्य भत्ते भी प्राप्त होते है ! 
०भारत के राष्ट्रपति का वेतन पूरी तरीके से आयकर  से मुक्त होता है !
०पद से मुक्त होने के पश्चात राष्ट्रपति को नौ - लाख रूपये प्रति वर्ष के मान से पेंशन मिलती है !
                                        - ०००००००००० -

                !        राष्ट्र - पति एवं  उप राष्ट्र - पति तुलनात्मक अध्ययन !
-- राष्टपति संसद का एक मुख्य अंग होता है ! जबकि उप-राष्ट्रपति संसद के एक अंग राज्य सभा का सभापति होता है !
--- राष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्य तथा राज्य विधान मंडल के सदस्यों के द्वारा किया जाता है !जबकि उपराष्ट्रपति का निर्वाचन सिर्फ संसद के  दोनों सदनों के सदस्यों के द्वारा होता है !
---- राष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी में लोकसभा का सदस्य निर्वाचित हो सकने योग्य - योग्यता होनी चाहिए ,जबकि उपराष्ट्रप्ति पद के लिए प्रत्याशी को , राज्यसभा की सदस्यता के लिए अर्ह होना चाहिए !
-- राष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए  14दिन की नोटिस के साथ - संसद के किसी भी सदन में प्रस्ताव लाया जा सकता है !इसे ही महाभियोग कहा जाता है !जबकि उपराष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए प्रस्ताव राज्यसभा में ही लाया जाता है !

---- महाभियोग की प्रक्रिया में राष्ट्रपति को अपना पक्ष रखने का अधिकार प्राप्त है !जबकि उपराष्ट्रपति को ऐसा कोई भी अधिकार नहीं दिया गया है !
---- संसद के दोनों सदनों के दो- तिहाई सदस्यों के बहुमत पारित होने के उपरान्त ही , राष्ट्रपति पर महाभियोग संकल्पित किया जा सकता है !
जबकि उपराष्ट्रपति को पद से हटाने का संकल्प राज्यसभा में उपस्थित सदस्यों के बहुमत के द्वारा पारित किया जाता है ,इसके बाद लोकसभा के द्वारा स्वीकृति भी गृहीत की जाती है !

                                   
   अब तक निर्विरोध चुने गये -    उपराष्ट्रपति
1-          01                      डॉ.राधाकृष्णन  
   02-                    एम् .हिदायेतुल्ला
   03-                    डॉ.शंकर दयाल शर्मा
- डॉ .राधाकृष्णन सर्वाधिक समय तक राष्ट्रपति के पद पर आसीन रहे थे !
- व्ही .व्ही .गिरि -उपराष्ट्रपति के पद पर सबसे कम समय तक पदासीन रहने वाले उपराष्ट्रपति थे !
-- उपराष्ट्रपति - पद से सेवा - निर्वृत्त होने के कुछ समय पूर्व ही उपराष्ट्रपति कृष्ण-कान्त का निधन हो गया था !
             उपराष्ट्रपति जो राष्ट्रपति नहीं बन सके
1-गोपाल स्वरुप पाठक  2- बी . डी . जत्ती
3- एम० हिदायेतुल्ला    4- कृष्णकांत                        

 विशेष- उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संदर्भित सभी विवादों पर अंतिम अधिकार "सर्वोच्च न्यायालय "का ही होता है !
-राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन से                                                                       सम्वन्धित समस्त विषयों का विनियमन संसद के द्वारा किया जाता है !

                                                      - यदि उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा "शून्य                                                                       "घोषित कर दिया जाता है !
                                                तो पदस्थ रहते हुए पूर्व के निर्णय किसी भी सन्दर्भ में अवैधानिक नहीं होते है !


                                                               
               संसद



-          संसद का निचला सदन लोकसभा एवं उच्च सदन राज्यसभा कहलाती है !
-          भारतीय संसद राष्ट्रपति ,राज्यसभा तथा लोकसभा से मिलकर बनते है !
-         लोकसभा में जनता का प्रतिनिधित्त्व होता है ,जबकि राज्यसभा में भारत के राज्यों
 का प्रतिनिधित्त्व होता है


     राज्य - सभा  



- राज्य सभा एक स्थाई सदन है ,तथा इसका विघटन नही होता इसके सदस्य 6वर्ष के लिए निर्वाचित होते है ! 
- राज्य - सभा की अधिकतम सदस्य संख्या 250 होती है ,जिसमे 238सदस्य राज्यों तथा संघ राज्य संघ क्षेत्रों से निर्वाचित होते है !
 - राज्यसभा के 12सदस्य राष्ट्रपति के द्वारा मनोनीत किये जाते है !
- राज्य सभा के एक तिहाई सदस्य प्रति - दो वर्ष पर अवकाश ग्रहण करते है ! 
- सदस्यों का निर्वाचन राज्य - विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा अनुपातिक प्रतिनिधित्त्व पद्धति के आधार पर एकल संक्रमनीये मत द्वारा होता है ! 
- राज्य - सभा का सभा पति - उपराष्ट्रपति होता है ! 
- राज्य - सभा के उप-सभापति का चयन राज्यसभा ही करती है ! 
- वर्तमान में राज्य सभा की सदस्य संख्या 245  जिसमे 12मनोनीत सदस्य शामिल है !
- मन्त्रिपरिषद राज्यसभा के प्रति उत्तरदाई नहीं होती है !
- राज्यसभा की सदस्यता के लिए न्यूनतम आयु सीमा 30वर्ष है !
- अखिल भारतीय सेवाओं का सृजन राज्य सभा के दो तिहाई सदस्यों के बहुमत के माध्यम से किया जाता है !
- धन - विधयेक से सन्दर्भ में राज्य सभा को केवल सिफारिशे करने के अधिकार प्राप्त है !
- राज्यसभा धन विधेयक में कोई संशोधन नहीं कर सकती है ! 
- राज्यसभा अपने सभापति को प्रस्ताव पारित करके पद से हटा सकती है ,इस तरह के प्रस्ताव पर चर्चा अथवा मतदान के समय सभापति सभा का सभापति नहीं कहलाया जायेगा ! 
- लगातार 60 दिनों तक सदन की बैठक से अनुपस्थित रहने पर सदस्य की 
 राज्यसभा से सदस्यता समाप्त कर दी जाती है !
                

 राज्यसभा के विशेषाधिकार

अनुच० 249 के अंतर्गत  राज्यसभा को यह अधिकार प्राप्त है ,कि वह राज्य सूचि के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित कर सकती है !
 इसके परिणाम स्वरुप उक्त विषय पर संसद को विधि निर्माण का अधिकार प्राप्त हो जाता है !
 ०० अनुच्छेद 312के अंतर्गत राज्यसभा नइ अखिल भारतीय - सेवाओं का सृजन कर सकती है !इसके परिणामस्वरूप केंद्र सरकार नइ अखिलभारतीय  सेवाओं का सृजन हेतु अधिकृत हो जाती है ! 



        लोकसभा 

--लोकसभा के सदस्य सीधे जनता के माध्यम से प्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से चुने जाते है !
-- लोकसभा संसद का निम्न सदन है ,  
-- लोकसभा की सदस्यता के लिए प्रत्याशी की आयु 25  वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए !
-- लोकसभा का सदस्य पांच वर्षो के लिये चुना जाता है !यदि चाहे तो त्यागपत्र के माध्यम से सदस्यता का त्याग कर सकता है !
-- लगातार 60दिनों तक लोकसभा की बैठक  से बिना अनुज्ञा के अनुपस्थित                   रहने पर उसकी सदस्यता स्वत:ही समाप्त हो जाती है !
-- लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 552 है , जिसमे 530सदस्य राज्यों से तथा 20सदस्य केंद्र शाशित प्रदेशों से चुने जाते है !वर्तमान में लोकसभा की सदस्य संख्या 545है !
-- राष्ट्रपति एंग्लो - इंडियन समुदाए से दो सदस्यों को मनोनीत कर सकता है !
--आपात उद्घोषणा की स्थिति में संसद विधि द्वारा लोकसभा की अवधि एक वर्ष के लिए बड़ा सकती है !किन्तु इस प्रकार से बड़ाई गई अवधि किसी भी स्थिति में आपात उद्घोषणा के समाप्त होने के पश्चात 6 माह से अधिक नहीं होगी !
--लोकसभा की प्रथम बैठक के पश्चात जल्द से जल्द लोकसभा अध्यक्ष एवं लोकसभा उपाध्यक्ष का चुनाव् अपने सदस्यों के बीच  से करती है !
-- एक व्यक्ति एक समय में केवल एक ही सदन का सदस्य हो सकता है !
-- धन - विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रेषित किये जाते है ! 
--- वार्षिक वित्तीय विवरण केवल लोकसभा में प्रस्तुत किये जाते है ! 
--- संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा का अद्यक्ष करता है ! 
-- लोकसभा में सिर्फ अनुसूचित जातियों - जनजातियो को ही आरक्षण प्रदान  
 किया जाता है !अन्य किसी जाती या वर्ग को आरक्षण नहीं दिया जाता है !
-- 




संसद सत्र- सत्रावसान एवं              विघटन 


- संसद का सत्र राष्ट्रपति के द्वारा आहूत किया जाता है !
- संसद की कार्यवाही में कोई भी सदस्य यदि अनुपस्थित है ,अथवा अन्य कोई अनाधिक्रत रूप से उपस्थित होता है ,तो यह किसी भी तरीके से सदन की कार्यवाही को प्रभावित नही करेगा !
-- राष्ट्रपति समय - समय पर संसद का सत्रावसान करता है !सदन के सत्रावसान के परिणाम स्वरुप सदन में लम्बित विधयेक अथवा कार्य समाप्त नहीं होते !
-- एक सत्र में कई बैठके होती है , स्थगन स्वयम सदन का कार्य होता है , जो सभापति अथवा स्पीकर के माध्यम से किया जाता है !

-- विघटन सदन की कालावधि को समाप्त कर देता है !जबकि राज्यसभा का विघटन ही नहीं होता है !
-- लोकसभा का विघटन राष्ट्रपति प्रधनमंत्री की सलाह से करता है ! 



        विघटन 

*यदि कोई विधेयक लोकसभा के माध्यम से प्रेषित नहीं किया गया किन्तु राज्यसभा में ल्म्वित है ,तो वह समाप्त नहीं किया जा सकता है !
*  यदि विधेयक राज्यसभा द्वारा पारित करके लोकसभा में भेजा जा चूका है , तथा लोकसभा में लम्बित है , उसे समाप्त ही मन जाता है !
*  वह विधेयक जिसे लोकसभा में पारित करके राज्यसभा को भेजा जाता है , एवं व्ही पर ल्म्वित रहता है , तो वह समाप्त  माने जाते  है !
* इस प्रकार के विधेयकों को यदि राष्ट्रपति चाहे तो - विघटन के पूर्व संयुक्त अधिवेसन बुला कर बचा सकता है !
* लम्वित विधेयक में वह विधेयक नहीं आता ,जो दोनों सदनों से पारित होने के पश्चात राष्ट्रपति की सहमती के लिए रखा हुआ है !
*राज्यसभा में पुनः स्थापित कोई विधेयक जो लोकसभा में भेजे जाने के पश्चात और लोकसभा द्वारा संशोधनों के साथ राज्यसभा को लौटा दिए जाने के पश्चात उस सभा में लम्बित हो समाप्त माने जाते है !      
राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार हेतु भेजे गये विधेयक समाप्त नहीं होते एवं उन पर नए सदन के द्वारा  विचार किया जा सकता है  !
-लोकसभा में लम्बित शेष सभी मामले वे चाहे प्रस्ताव ,संकल्प ,संशोधन अथवा अनुपूरक अनुदान मांग हो अथवा याचिका समिति को भेजी गई याचिका हो , लोकसभा के विघटन के साथ ही समाप्त माने जाते है !








  

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