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Physics # Goal 2019

     1  .            Physics  -- भौतिक - विज्ञान 

भौतिकी की परिभाषा :- 
                                      विज्ञान की वह शाखा - जिसमे ऊर्जा के बिभिन्न स्वरूपों तथा - द्रव्य से उसकी अन्योन्य - क्रियाओं - का अधयन्न किया जाता है , भौतिकी -अथवा भौतिक - विज्ञान कहलाता है !


द्रव्य :-
        वह वस्तु जो स्थान घेरती है , जिनमे द्रव्यमान होता है , तथा जिनका अनुभव प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किया जा सकना सम्भव हो , ऐसी वस्तुएं द्रव्य के अंतर्गत आती है !
जैसे : - लोहा -, पत्थर ,- सोना -, वायु -आदि !

Physics : - द्रव्य की संरचनाओं तथा उनमे होने वाली क्रियाओं के वैज्ञानिक अध्यन क भौतिक विज्ञान कहते है !
अनेक भौतिक शास्त्री प्रकाश को भी - द्रव्य का एक स्वरुप मानते है !
                                                                        #मापन #
ऐसी राशियाँ जिनका मापन सम्भव हो , उसे भौतिक राशि कहते है , !
#किसी भी भौतिक राशी को व्यक्त करने के लिए , कम से कम आंकिक मान , एवं मात्रक की आवश्यकता होती है !
#किसी भी भौतिक राशि को ,व्यक्त करने के लिए , जिस मान का उपयोग करते है , उसे मात्रक कहा जाता है !
#मात्रक दो प्रकार के होते है !
# 1  .मूल मात्रक :

   2. व्युत्पन्न मात्रक :
#  SI पद्धति में मूल मात्रकों की संख्या सात है !
#मूल राशियों को व्यक्त करने के लिए , किसी अन्य राशि की सहयता  नहीं ली जाती है , जबकि व्युत्पन्न रशिओं को , मूल राशियों की सहायता से व्यक्त किया जाता है !
# सन 1960तक  विश्व स्तर पर माप -तौल की कई प्रणालियाँ प्रचलित थी , जिन्हें CGS सेंटीमीटर , ग्राम सेकंड -, फ्रेंच या मेट्रिक पद्धति -MKS -- मीटर -किलोग्राम -सेकंड  - ऍफ़ .पी .एस . फुट ,पौंड ,सेकंड - के नामों से जाना जाता था !
#SI  ' desystemy International डी " units का संक्षिप्ताक्षर , है , !
# SI में मूल राशियों एवं व्युत्पन्न राशियों के मात्रक निम्न लिखित है :
      मूल राशि                                                                      मूल मात्रक 
    *      दूरी                                                                              मीटर 

*       द्रव्यमान                                                                     किलोग्राम 

*        समय                                                                            सेकंड
*    उष्मागतिकी ताप                                                             केल्विन
*    विद्युत् धारा                                                                   एम्पिएर
*     ज्योति तीव्रता                                                                 कैंन्डेला
*     पदार्थ की मात्रा                                                                 मोल

## सम्पूरक मूल राशि                                                           मात्रक 
*    समतल कोण                                                                 रेडियन 

*    घन कोण                                                                    स्टे -रेडियन 









2 . गति ( MOTION)

यदि कोई वस्तु अथवा पिंड - किसी बिंदु के सापेक्ष - समय के साथ साथ अपने वर्तमान स्वरूप के सन्दर्भ में स्थान परिवर्तन करना सुनिश्चित कराती है , तो उपर्युक्त अवस्था , वस्तु अथवा पिंड की "गति " कहलाती है !




भौतिक शास्त्रियों के अनुसार  गति को , तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया- गया है ,जो निम्न है :
1 - एक विमिय गति :- (One Dimensional )
2 - द्विविमीय गति :-(Two Dimensional)
3-त्रिविमीय गति :-  (Three Dimensional)
1- एक विमीय गति : एक विमीय गति को सरल रेखीय गति ,रैखिक गति ,इत्यादि नामों से जाना जाता है !
       * इस गति में पिंड का वेग (v)और त्वरण (a)एक ही दिशा में कार्य करता है !
* इस गति का प्रारम्भिक  वैज्ञानिक अध्यन "गेलिलियो "ने किया था !
# भौतिकी वैज्ञानिक "न्यूटन " ने अपने प्रसिद्द ग्रन्थ "Mathemetticia Pricipia" के भाग एक में गति के तीन नियम प्रस्तुत किये थे !
जो निम्न है :
1.  जड़त्त्व का नियम : इसी नियम को जड़त्त्व का नियम भी कहते है !
# अगर वस्तु पर कोई बाह्य वल न लगे , तो वह विरामाव्स्था या एक समान गति , की अवस्था में ही बनी रहती है , गलीलियो ने इस गुण को जड़त्त्व कहा !
#इस नियम के अनुसार यदि कोई बस्तु अथवा पिंड अपनी स्थिर अवस्था में है तो ,वह स्थिर अवस्था में ही रहेगा जब तक की उस पर कोई वाह्य वल  न लगाया जाये !
#वल _: वल वह कारक है , जो किसी वस्तु अथवा पिंड की विरामाव्स्था अथवा गतिज अवस्था में परिवर्तन लाता है !
#
   # द्वितीये - नियम :- संवेग परिवर्तन का नियम :इस नियम के द्वारा वल का समीकरण तथा मात्रक प्राप्त होता है !

*इसी नियम के अनुसार " किसी वस्तु अथवा पिंड के संवेग परिवर्तन की दर उस पर आरोपित वल के अनुक्रमानुपति होता है !


**** त्रितिये नियम :-प्रत्येक क्रिया के विपरीत प्रतिक्रया :-न्यूटन के इस नियम के अनुसार प्रत्येक क्रिया के बराबर विपरीत प्रतिक्रिया होती है !


@@@ द्विविमिय गति :- द्विविमिये गति को , वक्र रेखीय -एवं समतल गति के नाम से भी जाना जाता है !
@द्विविमिय गति में पिंड का वेग एवं त्वरण भिन्न - भिन्न होता है !
@ प्रक्षेप्य गति एवं एक समान वृत्तिय गति - द्विविमीय गति के ही उदाहरन है !


# Projectile Motion:-इस गति में पिंड को उर्ध्वाधर दिशा से भिन्न किसी अन्य दिशा में प्रथ्वी की सतह से उपर फेंका जाता है , इसी फेंके हुए पिंड को प्रक्षेप्य कहा जाता है !
* इस गति में पिंड का पथ प्र्वल्याकार होता है !
@पिंड के पथ के पूर्ण परवल्याकार होने के लिए वायु का प्रतिरोध शून्य तथा  गुरुत्वीय त्वरण का मान अचर रहना चाहिय !
@ कोई भी प्रक्षेप्य जितने समय तक वायु में रहता है , उसे उसका उड्डयन काल काहा जाता है , !
@किसी प्रक्षेप्य का उड्डयन काल (T)= 2vsin8/g होता है !
                                             यहाँ v= प्रक्षेप्य की गति
                                                  8= प्रक्षेप्य के द्वारा  क्षितिज के साथ बनाया- गया कोण
                                                  g= गुरुत्वीय  त्वरण है !
@एक समान वृत्तिय गति :-किसी वृत्तिय पथ पर एक समान गति करते हुए पिंड की चाल नियत रहती है , जबकि उसका वेग प्रत्येक बिंदु पर , परिवर्तित होता रहता है !
#वृत्त पर गति करते हुए पिंड पर दो वल कार्य करते है , एक वल वृत्त के केंद्र की ओर लगता है , जबकि दूसरा वल वृत्त के केंद्र के वाहर लगता है !अंदर लगने वाला वल "अभिकेन्द्रीय वल "कहलाता है !
जबकि बाहर लगने वाला वल "अपकेन्द्रिय "वल कहलाता है !


# यदि पिंड संतुलन की स्थिति में होता है , तो अभिकेन्द्रीय वल का मान 'अप्केंद्रिये "वल के मान के बराबर होता है !
@     वल (f) = mv2/r
यहाँ पर m - पिंड का द्रव्यमान 
v= पिंड का वेग 
r पथ की त्रिज्या है !
विशेष -: ग्रहों एवं उपग्रहों में अभिकेन्द्रीय वल गुरुत्वाकर्षण वल के द्वारा प्राप्त होता है !

@ अपकेन्द्र वल : यह एक छद्म वल होता है , अजड़त्व फ्रेम में न्यूटन ,के नियमों को लागु करनेके लिय इस वल  की कल्पना की गई , तथा यह वल पर्यवेक्षक की स्थिति पर निर्भर करता है ,इस वल की दिशा अभिकेन्द्रीय वल के विपरीत होती है !


@विशेष :-दूध से मक्खन अलग करने वाली मशीन ,मथानी , -, वाशिंग - मशीन  का अपकेन्द्र शोषक अपकेन्द्र वल के , सिद्धांत पर ही कार्य सम्पादित करते है !



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3. विद्युत् एवं चुम्बकत्त्व( ELECTRICITY  & MAGNETISM)

विद्युत् चुम्बकत्त्व 

-जैसा की हम सभी को ज्ञात है ,की विद्युत् से अभिप्राय सीधा  - सीधा" आवेश "  से होता है !
1600 ई .पू . में ब्रिटेन के वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम विद्युत् शब्द का प्रयोग किया था ,जिसका नाम "Gilbert"था !
आवेश :-
             " किसी भी पदार्थ के निर्माण के लिए , जिन मूल कणों की आवश्यकता होती है , उनमे से :"आवेश" भी एक कण  है , हालांकि , वैज्ञानिकों ने आवेश की कोई एक निर्धारित परिभाषा परिलब्ध नहीं की है , लेकिन "आवेश "को  इसके द्वारा उत्पन्न प्रभावों के माध्यम से समझा जा सकता है !

"आवेश " एक द्रव्य पर उपस्थित वह गुण है ,जिसके कारण वह - द्रव्य चुम्वकिय क्षेत्र उत्पन्न करता है,या इस प्रकार के क्षेत्रों का अनुभव कराता है !
जैसे उदाहरण के तौर पर देखे तो ;
--"कांच की बनी हुई छड को जब - , रेशम के कपड़े से रगडा जाता है तो , कांच की छड पर धन आवेश एवं रेशम के कपड़े पर ऋण आवेश आ जाता है" !
विद्युत् चुम्वक्त्त्व 
                                                          तरंग गति :- (WAVE-MOTION)
तरंग एक विक्षोभ है , जिसमे माध्यम के कण अपने माध्य स्थिति (mean position)से स्थाई रूप से विस्थापित हुए बिना उर्जा का संचरण करते है !
** यदि किसी भी तरंग को माध्यम की आवश्यकता होती है , तो ऐसी तरंगो को यांत्रिक तरंगे कहा जाता है !
*** ऐसी तरंगे जिन तरंगो को संचरण हेतु किसी भी माध्यम की आवश्यकता न हो ऐसी तरंगे अप्रत्याक्ष तरंगे कहलाती है !

माध्यम की कणों के कम्पन की दिशा के आधार पर यांत्रिक तरंगो को दो भागों में बिभाजित किया गया है !:
(#)   अनुप्रष्थ तरंग (Transverse )

(#)   अनुधेर्य तरंग (Longitudinal)

(#)   अनुप्रष्थ तरंग (Transverse ):-  माध्यम के कणों का कम्पन तरंग संचरण की दिशा के लमव्वत होता है ,यह शीर्ष और गर्त के रूप में संचरित होती है , !
** इस प्रकार की तरंगे ठोस एवं द्रव के उपरी सतह पर पैदा होती है !

**विद्युत् चुम्वक्त्त्व  :
                                    विद्युत् चुम्बकीय तरंगों में -गामा किरणें -एक्स -किरणें -द्रश्य प्रकाश -अवरक्त किरने - परा -वैगनी किरणें - तथा रेडियो तरंगे शामिल होती है !किसी बंधी हुई रस्सी के एक छोर को -पकड़कर हिलाने पर उत्पन्न तरंगे -सितार के तार को -छेड़ने पर उत्पन्न तरंगे इत्यादि अनुप्रष्थ तरंगों के उदाहरण है !

(#)   अनुधेर्य तरंग (Longitudinal):-  माध्यम के कणों का कम्पन तरंग संचरण के दिशा के , समानांतर होता है !यह स्मपीरण तथा विरलन के रूप में संचरित होती है !
** इस प्रकार की तरंगे -ठोस द्रव -तथा गैस तीनो ही माध्यम में पैदा हो सकती है !
** गैस में उत्पन्न तरंगे हमेशा ही सिर्फ अनुधेर्य तरंगे होती है !

@  तरंगों की विशेषताए :- 
                                 *परावर्तन (Reflection)- तरंगो का किसी सतह से टकराकर फिरसे उसी माध्यम में वापिस होना -परा वर्तन कहलाता है !
* अपवर्तन -(Refraction)- :- यह तरंग की वह विशेषता है , जिसके कारण तरंगे एक माध्यम से दुसरे माध्यम में जाने पर अपने मूल पथ से विचलित हो जाती है !
सरल माध्यम से विरल माध्यम में जाने पर यह अभिल्म्व से दूर हट जाती है !

विवर्तन :(Diffraction):- तरंगो की ऐसी विशेषता जिसमे किसी वाधा के किनारे पर मुड जाती है , यह भी अनुप्र्ष्थ एवं अनुधेर्य दोनों प्रकार की तरंगो में पाया जाता है !
** व्यतिकरण :- यदि दो समान आवृत्ति वाली तरंगे एक ही दिशा में  वेग से गतिशील हो तो किसी विन्दु पर इनकी तीव्रता अधिकतम तथा किसी विन्दु पर न्यूनतम होती है !यही कारक व्यतिकरण कहलाता है !
ध्रुवन:- ऐसी अवस्था जिसमे तरंग के कम्पन तरंग की गति के ल्म्व्वत तल में केवल एक ही दिशा में होता है !
धुर्वन केवल अनुप्रष्थ तरंग में होता है !


                                   




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